प्राचीन भारतीय और पुरातत्व इतिहास >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 प्राचीन भारतीय इतिहास बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 प्राचीन भारतीय इतिहाससरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 प्राचीन भारतीय इतिहास - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- क्या प्राचीन राजतन्त्र सीमित राजतन्त्र था?
अथवा
प्राचीन भारत में सीमित राजतंत्र पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर-
प्राचीन भारत में राजा निरंकुश न होकर प्रजा का सेवक ही समझा जाता था। वह अपनी सेवाओं के बदले में प्रजा से उपज का छठाँ भाग कर के रूप में प्राप्त करता था। प्राचीन ग्रन्थों में इसे उसकी 'वृत्ति' कहा गया है। प्रजा से प्राप्त वृत्ति के बदले राजा उसे सुरक्षा प्रदान करता था। उद्देश्य के कोई किसी को कुछ भी नहीं देता। अतः राजा से सुरक्षा प्राप्त करने कर देती है।
अपकार्क के अनुसार बिना की आशा में ही प्रजा उसे प्राचीन इतिहास के आदर्शभूत शासक अपने को सदा प्रजा का सेवक ही समझते थे। सिद्धान्तः राजा की स्थिति निरंकुश थी किन्तु व्यवहार में वह अनेक प्रतिबन्धों से युक्त था। प्राचीन शास्त्रकारों ने राजा को निरंकुश होने से बचाने के लिए अनेक नियमों का विधान किया था। वैदिक युग में सभा तथा समिति जैसी संस्थायें राजा की निरंकुशता पर रोक लगाती थी। अनेक उल्लेखों से प्रकट होता है कि समिति के प्रतिकूल हो जाने पर राजा की स्थिति संकटपूर्ण हो जाती थी तथा उसका अपने पद पर बना रहना कठिन हो जाता था। राजा की समिति में प्रिय पात्र होने तथा समिति में उसके उपस्थित होने के कर्त्तव्य का उल्लेख मिलता है। बताया गया है कि राष्ट्र की उन्नति के लिए राजा तथा समिति में संमनस्कता होना चाहिए। एक स्थान पर प्रार्थना की गयी है कि राजा तथा समिति दोनों के मन्त्र, मन, चित्त, प्रयत्न और हृदय एक समान हो।
प्राचीन ग्रन्थों में राजा के अत्याचार एवं उसकी निरंकुशता का प्रतिरोध करना प्रजा का कर्त्तव्य बताया गया है। शुक्रनीतिसार में कहा गया है कि यदि किसी राज्य का शासक अत्याचारी हो तो उसकी प्रजा उसे यह चेतावनी दे कि यदि वह अपना आचरण नहीं बदलता तो वे उसके राज्य को छोड़कर अन्यत्र चले जायेंगे। यदि राजा इस पर भी नहीं सुधरता तो प्रजा को अधिकार है कि वह अन्यायी राजा को हटाकर उसके स्थान पर न्यायशील राजा को सिंहासनासीन कर दे। याज्ञवल्क्य राजा को सलाह देते हैं कि वह प्रजा के कोप से दूर रहे क्योंकि इसके द्वारा निकली हुयी कोपाग्नि उसके यश, कुल तथा जीवन का अन्त कर देती है।
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